चीख़



किसी की आवाज़ नहीं आती उस तक अब ,
वो इतने धुएँ में है घुम !

उसका साया ही उस तक पहुँच नहीं पाता ।
उसकी रुंधी हुई साँसें किसी कोठरी में दफन हो जैसे!

चीखता है वो उस चीख से सब कुछ बदल देना चाहता है।
वो चीख कर बोझ हटा देना चाहता है ।
मगर !!!!!!


                




वो सिर्फ़ चीखता है बिना आवाज़ के ।

चाहे कितना ही जोर लगा ले,
एक हल्की सी फुसफुसाहट भी नहीं होती ।

गला जैसे रुंध गया हो!

ना बाहर शोर होता है, ना हलचल ।
बस अंदर ही अंदर घुटता जाता है।

अंदर तूफ़ान है, अंदर शोर है ,और है सिर्फ़ घुटन !






वो बता देना चाहता है!
वो नहीं जानता कि इसका कभी खात्मा होगा या नहीं?
वो बस चीखता है, सब तहस- नहस करने को !

लेकिन आवाज उसका साथ नहीं देती,
हर वक्त!
वो अपनी कायरता या लाचारी पर दुखी हो जैसे।

उसे लगता है वो जी नहीं सकता, ये उसकी नियति है ।
स्वीकार लिया हो जैसे!
मग़र ये स्वीकारना उसकी आत्मा को चोटिल कर रहा है। 






उसे पता है, वो हमेशा से किस काबिल रहा है।
उसे पता है वो कितनी ही जंग जीत कर आया है ,यहाँ तक !

वो हर waqt उस घुटन और नकारात्मकता की कोठरी से  बाहर निकलना चाहता था ।

वो धीरे धीरे कोशिशें भी करता है ।
वो कोशिश करता है अब,
चीखना कम करने की ।





क्यूंकि वो जान गया है, चीखने से कुछ नहीं होगा!
बाहर शोर सुनाई दे , उसके लिये भीतर उसे शांति लानी होगी ।

बिन आवाज के चीखना उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता जा रहा है।
क्यूंकि कोई भी इतना सामर्थ्यवान नहीं कि बिन आवाज़ शोर सुन सके, वो खुद भी नहीं ।

वो अब अपना चीखना बंद करता जा रहा है....


उसके भीतर का शोर अब अचानक से बंद हो गया है।

उसका शरीर जाग्रत हो गया है!
उसकी चेतना जाग्रत हो गई है ।


और इतने में ही उसकी नींद खुल जाती है।
                      -तन्वी शर्मा    
                  ©10viwrites_



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