मै चल रहा, डगर- डगर!

इक डगर जो करती असर, पकड़ नहीं रहा मग़र।

मै झूमता मै मस्त सा, हूँ लग रहा अगर!
है आसपास भी ज़हर, उगल रहे,विचार मग़र।
मै हूँ नहीं बहार में, शामें गुज़र रही तो क्या?
मै बिखर रहा हूँ रात में।।

है रोशनी कहीं मगर, है चंद्रमा पूरा अगर!
मै शांत सा दिखा हूँ तो, है राज़ भी इस बात में।

मै हारा नहीं ,थका मग़र!
मेरा बल है ख़ाक में,
है उम्मीद का चोटिल तना, छाया मगर है पास में।
बेसब्र सा बेमन सा, जीता अगर, हूँ आज में!
वजह बहुत सी ख़ास हैं, है आम सी नहीं बात है।।

मग़र वो क्या कहे नज़र, है मन में ये ही बात सी!
मेरा वजूद खोलता, सिमट रहा वो आप ही।
मेरे आज को किया, है विषाक्त ,अतीत ने!
भविष्य हाथ जोड़ता,
बचालो मुझ को आज में।


मै फँस गया हूँ, काल में, नहीं ख़बर है आज की,
मै दोड़ता भविष्य में, हूँ भागता अतीत से।।

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Deep

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