गिनती के वो तीन हर्फ़, 
बेहद थे सुहाने। 

तबस्सुम की कलियाँ जो खिली, 
तो बन गए अफसाने। 

ताश के पत्तों के खेल सा, 
वो बिखरा यहाँ वहाँ। 

कलियाँ जो चिटकी, 
तो बन गए तराने 

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