सफ़र





निकल पड़ा हूँ राह पर! 
कुछ नये साथी मिल रहें हैं, 
कुछ पुराने रिश्तें छुट रहें हैं। 

मंजिल पर एक दिन पहुँच ही जाऊंगा, 
सफ़र मुझे अभी परख रहा है!
कुछ नये अनुभव जोड़ रहा है, 
अपनों और गैरों में फर्क़ सिखा रहा है। 

चल रहा हूँ मै,अकेला ही,राह पर! 
कभी खड़े होकर अपनों को देखता हूँ तो, 
सिवा 'मेरे' कोई नज़र नही आता। 
आंसू साथ दे जाते हैं, 
तब जब कोई साथ नहीं आता। 

सफ़र को देख,
फिर मै मुस्कुरा जाता हूँ! 
वो मेरे साथ ख़ुश है, 
इसी में सुकून पाता हूँ। 

एक सच्चे साथी की तरह, 
ये सफ़र मुझे सिखला रहा है। 
अजीबो गरीब लोगों से रिश्तें छुटवा रहा है। 

अपने आप को समर्पित जब मै करता जाता हूँ
उस मंजिल की चाह में बेहतर रूप में निखरता जाता हूँ। 

©tanvi





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